शुक्रवार, 30 मार्च 2018

कोमल पत्ते

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जिजीविषा
मन की धरती
जब होने लगे पठार
संवेदनाएँ तोड़ने लगें दम
उत्साह डूबने लगे
निराशा के समंदर में
आसपास के सूखे पत्ते
मन में शोर करने लगें
मधुर वाणी भी
कानों को बेधने लगें
तब जाना उस पठार पर
जहाँ दरारों से झाँकती है
दो नन्हीं कोमल पत्तियाँ
तब लगता है
कहीं तो दबी है जड़
उसके अहसासों की
नमी को सहेजे हुए।
-ऋता
3
मौज
उम्मीदों की खूँटी पर
ना उम्मीदों के वस्त्र टांगकर
मौज करना चाहती हूँ
मैं हर सोच से परे जाना चाहती हूँ।
रुई के फाहों जैसे उड़ते
नादान स्वप्न की तितली
धूप में खड़े गुलमोहर पर
बैठती फिर उड़ जाती
एक मुट्ठी छाँव की तलाश में
आकाश को
बादलों से ढक देना चाहती हूँ।
हाँ, मैं मौज से जीना चाहती हूँ।
कलकल नदियाँ
शोर नहीं करतीं
बहती जाती निश्चित रिदम में
मन मे बहती नदियों को
बांध कर रिदम देना चाहती हूँ।
बस, मौज से जीना चाहती हूँ।
जिंदगी नाम है
संघर्ष त्याग और प्रेम का
यह पाठ लिखा किसने
किसके लिए लिखा
अब बदल देती हूँ परिभाषा
तुम सब कुछ रख लो
अपनी मौज मुझे दे दो।
सही समझे
मैं भी मौज से जीना चाहती हूँ।
मौसम के अपने जलवे
अपने राग होते हैं
जो इन्हें हू ब हू जी ले
बड़े भाग्य होते हैं
मैं हवा बन जाना चाहती हूँ
फूलों से खुशबू लेकर
कायनात में बिखरना चाहती हूँ।
हाँजी हाँ,
मैँ मौज से जीना चाहती हूँ।
-ऋता

बुधवार, 28 मार्च 2018

हैप्पी जर्नी

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हैप्पी जर्नी
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जब भी कोई जाता है
सुदूर यात्रा पर
गाड़ी रेलगाड़ी
या हवाई जहाज से
दही खिलाकर बोलते
हैप्पी जर्नी

यह एक दुआ है
जो कवच बनने की
रखती है ताकत
एक विश्वास है
हादसों से परे
सुरक्षा का
यह संदेश है
उस परमपिता को
कि वापस भेजना होगा
परिजनों को सहेजना होगा।

जब उतर जाती है
पटरी से रेल
या लैंडिंग में
बिगड़ जाता है संतुलन
तब महसूस होता है
ईश्वर के अस्तित्व का
कुछ को मिलता जीवनदान
कुछ निकल जाते
अंतिम सफर को
और
हम कह नहीं पाते
हैप्पी जर्नी|

जिन्हें मिल जाता
जीवनदान
उनकी आस्था
पक्की हो जाती
तकदीर पर।

आखिर आदमी के पास
यदि कोई है चमत्कार
तो वह है शुभकामनाओं का।
दिल से मिले
दिल से हो स्वीकार
परमात्मा सोचेंगे
हर हादसे के पहले
सौ बार
सौ सौ बार !
-ऋता

मंगलवार, 27 मार्च 2018

गाँव की पगडंडी

गाँव की पगडंडी
खड़ी बोली/देशज बोली
हिंदी/मागधी
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बिहान* होते ही
खुश हो जाती
मेरे गाँव की पगडंडी

बैलों की जोड़ी देखकर
खेत की मोड़ी देखकर
हरियर दुब्बी* से खेलकर
खुश हो जाती
मेरे गाँव की पगडंडी

ननका ननकी* खेले डेंगा पानी*
घुप्पी* में पिलाएँ* गोली*
पिट्टो* खेल में ढेर* दौड़ाते
सुनकर प्यारी मगही* बोली
खुश हो जाती
मेरे गांव की पगडंडी

किसानों की मेहरारू* लातीं
अँचरा* में सत्तू और रोटी
उठती सोंधी सोंधी खुशबू
पायल की रुनझुन रुनझुन से
खुश हो जाती
मेरे गांव की पगडंडी

दलान* में दादी सुड़कती*
लोटा भरकर चाय
दादा जी खंखार* के रखते
घर के भीतर पाँव
लजाती नई बहुरिया*
खुश हो जाती
मेरे गांव की पगडंडी

पीपर* के फेरे लगते
अमा सोम जब होता
बड़* के पेड़ होते निहाल
बरसाइत* पूजा में
बेटी नथिया* पहनी गोर* रंगी
खुश हो जाती
मेरे गाँव की पगडंडी

इन्जोर*होते ही तुलसी पूजा
रोज साँझ को दिया बाती
गोबर से नीपल* अँगना
खन खन बाजे माइ के कंगना
देख पवित्तर* घर को
खुश हो जाती
मेरे गाँव की पगडंडी

रात में लड़कन* गिनें तरेंगन*
रट्टा मारें गिनती पहाड़े*
जीमें* थरिया *में
बेर बेर* मइया को पुकारे
घर की रौनक से
खुश हो जाती
मेरे गांव की पगडंडी
-ऋता


अर्थ-------
बिहान-सुबह
हरियर दुब्बी-हरी दूब
ननका ननकी-बेटा बेटी
डेंगा पानी-ेएक खेल का नाम
घुप्पी*(छेद) में पिलाएँ*(डालें गोली*(कंचे)
पिट्टो-सतोलिया
ढेर-बहुत
मेहरारू-औरत
अँचरा-आँचल
दलान-बैठका
सुड़कती-चुस्की लेकर पीना
खँखार-खाँसकर
बहुरिया-बहु
पीपर-पीपल
बड़-बरगद
बरसाइत पूजा-वट सावित्री पूजा
नथिया-नथ
गोर-पैर
इंजोर-उजाला
नीपल-लीपा हुआ
पवित्तर-पवित्र
लड़कन-बच्चे
तरेंगन-तारा
पहाड़े-टेबल अंग्रेजी में
जीमें-खायें
थरिया-थाली
बेर बेर-बार बार

गुरुवार, 15 मार्च 2018

करना अगर है कुछ तुझे तो इन्क़िलाब कर

करना अगर है कुछ तुझे तो इन्क़िलाब कर
छोड़े जो छाप, उम्र को ऐसी किताब कर

कीमत बहुत है वक़्त की जेहन में तू बिठा
बेकार बात में न समय को ख़राब कर

ये ज़िंदगी तेरी है तेरी ही रहे सदा
शिद्दत से तू निग़ाह को अपनी रुआब कर

शब भर रहेगा चाँद सितारे भी जाएँगे
लम्हे बिताए जो यहाँ उनका हिसाब कर

मुस्कान से सजा रहे मुखड़ा तेरा सदा
कुछ देर के लिए तू ग़मों से हिजाब कर

-ऋता शेखर 'मधु'

सोमवार, 12 मार्च 2018

नाज करो कि तुम नारी हो

नाज करो कि तुम नारी हो
नाज करो कि सब पर भारी हो
नाज करो कि तुमसे संसार है
नाज करो कि धुरी के साथ हाशिया भी हो
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है


तुम बया हो जो खूबसूरत नीड़ बुनती है
गर आंधियों में बिखर भी गए
तो सम्बल और धैर्य चुनती हो
दुआ तुम्हारी प्रभु भी स्वीकारते
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है

तलवों के नीचे की जमीन
शुष्क रूखी कठोर हो
या फिर मखमली शीतल दूब हो
नमी के साथ उर्वर रखती अहसास
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है

पहाड़ जैसी अडिग हो
गलत को गलत कहने के लिए
नदी जैसी निर्मल हो
निश्छलता से बहने के लिए
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है

एक कर में नवजीवन रखती
दूजा कर सेवा को समर्पित
तीजे कर में ई गैजेट्स संभालती
चौथा कर कलम को अर्पित
इतनी संपूर्णता किसे मिलती है

मधुर स्वरों की मालकिन तुम
हर क्षेत्र तुम्हीं से सज्जित है
आखिर क्यों फिर आधी दुनिया
तुम्हारे जन्म से लज्जित है
इतनी अपूर्णता भी किसे मिलती है

नाज करो कि नारी हो
-ऋता

शनिवार, 10 मार्च 2018

नारी

महिला दिवस विशेष रचना-दोहे
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नारी से ही रीत है, नारी से है प्रीत।
नारी से है सर्जना, नारी सुन्दर गीत।।


एक वृत्त के केंद्र में, नारी का संसार।
प्रेम त्याग के भाव से , देती है आकार।।

रिश्तों को सम्भालती, बन माला की डोर।
नारी से है अर्चना , तुलसी भावविभोर ।।

बस थोड़े सम्मान से, बन जाती है फूल।
कोमल मन की भावना, सह लेती हर शूल।।

मातृ रूप में है दुआ, बहन रूप में प्रीत।
पुत्री रूप अहसास का, पत्नी रूप है मीत।।

नर विस्तारित कीजिये, अपने मन का कूप।
वर्णित है हर वेद में, सरस्वती का स्वरूप।।

नदी पहाड़ धरा गगन, सभी जगह है राज।
खुल कर के अपनाइए , नारी की परवाज़।।

-ऋता शेखर 'मधु'

मंगलवार, 6 मार्च 2018

वक्त का बदलाव

वक्त का बदलाव
"जहाँ देखो सिर्फ बेटियों के लिए ही स्लोगन बन रहे।
मेरी बेटी मेरा अभिमान।
बेटी पढ़ाओ बेटी बढाओ।
बेटियों से संसार है....हुंह"
ननद रानी की बातें सुनकर सुहासिनी मुस्कुरा रही थी।
"तो इसमें दिक्कत क्या है जीजी। बेटियों को तो बढ़ावा मिलना ही चाहिए।"
"पर इस तरह के नारे बनाने की क्या जरूरत है। क्या बेटे वाले अपने बेटों पर अभिमान नहीं करते।" अब सुहासिनी दो बेटों वाली नन्दरानी का दर्द समझ रही थी।
"और बेटा या बेटी पैदा करना अपने हाथ में है क्या" जीजी अब भी बोले जा रही थीं।
"यही बात सदियों से कही जा रही। पर कहने वाले बदल गए। है न जीजी" सुहासिनी को वो दिन याद आ गया जब दूसरी बिटिया के जन्म पर बुरा सा मुँह बनाकर जीजी ने कहा था,"फिर से बेटी" ।
जीजी को भी शायद वही बात याद आयी थी इसलिए नजरें बचते हुए वहाँ से दूसरे कमरे में चली गईं।
-ऋता शेखर "मधु"