शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

रसकदम-लघुकथा



रसकदम
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‘’पिता जी, अपना मुँह खोलिए| मैं आपके पसंद की मिठाई लाई हूँ| एक गप्प और रसकदम मुँह के अन्दर|’’


‘’अरे, ये क्या कर रही हो स्निग्धा| तुम्हे पता है न कि पिताजी को डायबिटीज है फिर भी मिठाई...’’ सामने पिता का मुँह खुला ही रह गया और मिठाई स्निग्धा के हाथ में रह गई|

पिता की आँखों में छलक आए आँसूओं ने जाने कितना कुछ कह दिया|
‘’भइया, डायबिटीज के नाम पर किसी की क्षुधा को इस तरह कल्हटाना अच्छी बात नहीं| बीमारी एक ओर है और कठोरता एक ओर| आप दस की जगह बारह युनिट इंसुलिन दे देना...पर भइया , पिता जी को ऐसे न तरसाओ|’’

‘’अच्छा, तो अब तुम मुझे सिखाओगी|’’

‘’ठीक है, नहीं सिखाती| पिता जी को मिठाई भी नहीं देती| पर मैं आपके पसंद की पैटीज़ भी लाई हूँ| अब आप अपना मुँह खोलो|’’

‘’अरे, ये क्या कर रही स्निग्धा| तुम्हें पता है न तुम्हारे भइया का कोलेस्ट्रॉल बढ़ गया है| पैटीज खिलाकर जान लोगी उनकी,’’ भाभी ने टोका|

अचानक स्निग्धा को लगा कि आज वह सिर्फ गल्तियाँ ही कर रही|

‘’स्निग्धा, पैटीज़ दो मुझे, मैं आज रोज से ज्यादा टहल लूँगा और कुछ ज्यादा कैलोरी बर्न कर लूँगा| और वह रसकदम भी दो मुझे|’’

‘’पिता जी, मुँह खोलिए|एक गप्प और रसकदम मुँह के भीतर|’’

‘’भइया, ये क्या|’’

‘’अरे पागल, दो युनिट अधिक दे दूँगा, सब पच जाएगा|’’

भाभी मुस्कुराती हुई घर के अन्दर जा रही थीं स्निग्धा के लिए खाना लाने...आखिर पूरे दो साल पर ननदरानी भाईदूज में मायके आई थी|
--ऋता शेखर ‘मधु’

मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

साँझ ढले बिटिया पढ़ती है--छंद


मापनीयुक्त मात्रिक छंद -
1.
हरिगीतिका- गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा

सूरज उगा ज्यों ही गगन में, कालिमा घटने लगी|
मन व्योम के विस्तृत पटल पर, लालिमा बढ़ने लगी||
कलकल सरित अपनी लहर में, गीतिका कहती रही|
पाषाण वाली राह पर भी, प्रेम से बहती रही|
-ऋता शेखर 'मधु'
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मापनीयुक्त वर्णिक छंद -
2.
तिलका- ललगा ललगा

यह दीप कहे
तम दूर रहे
हिय प्यार खिले
शुभ लाभ मिले
-ऋता शेखर 'मधु'
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3.
तोटक- ललगा ललगा ललगा ललगा

जब भोर हुई निखरी कलियाँ|
घट हाथ लिए जुटती सखियाँ||
बृजभान लली घर से निकली|
चुपके यमुना तट को तक ली||
-ऋता शेखर 'मधु'
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4.
दोधक- गालल गालल गालल गागा
साँझ ढले बिटिया पढ़ती है|
दीप तले सपने गढ़ती है||
मैं घर की अब शान बनूँगी
जीवन का इतिहास रचूँगी||
-ऋता शेखर 'मधु'
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5.
विद्याधारी- गागागा गागागा, गागागा गागागा

जो जागा सो पाया, जो सोया सो खोया|
जो बोया सो खाया, जो बैठा सो रोया||
आने वाला आता, जाने वाला जाता|
दीदी खेले खोखो, भाई सोलो गाता||
-ऋता शेखर मधु
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6.
चंचला- गाल X 4, गाल X 4
.आन, ज्ञान, मान संग, बेटियाँ बनीं महान|
राग, रंग, आसमान, वे बढ़ा रहीं वितान||
सैन्य के समूह बीच, ले उड़ीं बड़े विमान|
देख कोख शानदार, है निहाल खानदान||
-ऋता शेखर 'मधु'

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बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

आसमाँ पर चाँद ढाला कौन है

आसमाँ पर चाँद ढाला कौन है
राह में दीपक जलाता कौन है

जा छुपी है बादलों में चाँदनी
इस कदर उसको डराता कौन है

उस किनारे एक साया है खड़ा
पूछने को हाल जाता कौन है

बतकही में आज माहिर हैं सभी
अब जहाँ में चुप से रहता कौन है

झूठ में लिपटे हुए किरदार सब
आइना सच का दिखाता कौन है

है पड़ी अपनी सभी को आज ‘मधु’
अब यहाँ रिश्ते निभाता कौन है
-ऋता शेखर ‘मधु’
2122 2122 212
काफिया-आ
रदीफ़-कौन है

सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

छंदमुक्त- मैं गुलाब


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छंदमुक्त...
शाख से टूटा हूँ तो क्या
मेरा हुनर मेरे पास है
मेरे खुश्बुओं की तिजोरी
सूख कर भी महकती रहेगी
मैं काँटों से न घबराया कभी
न धूप में कुम्हलाया कभी
गुलदस्तों में सजता रहा
अर्थियों पर गिरता रहा
प्रेमियों की अभिव्यक्ति बना
जीवन दर्शन की युक्ति बना
मैं आभारी हूँ सृष्टि का
समग्रता के मिसाल में
खुश हूँ हर हाल में
यूँ तोड़कर मुझे
इतना न इतराओ
ओ पवन सुहानी!
तुम लेकर मेरी खुश्बू
वहाँ बिखरा देना
जहाँ होगा कोई बालक
रूठा रूठा सा
जहाँ होगी ममता
सिसकी सिसकी सी
तो जनाब, मैं हूँ गुलाब
शाख से टूटा हूँ तो क्या
मेरा हुनर मेरे पास है|
-ऋता शेखर 'मधु'

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

शरद पूर्णिमा

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1
चाँदनी युक्त
गर्वीला रूप तेरा
सम्पूर्ण तुम
आज की रात
तीन रंग की चुन्नी
ओढ़ ली मैंने
चन्दा, बता दे जरा
कहाँ है मीत मेरा।


2
खिलखिलाता
चन्द्रमा रुपहला
मुग्धा नायिका
पी के आलिंगन में
घूँट घूँट पी रही
अमृत धारा।

3
तुम्हे सताने
छुप जाती चाँदनी
तड़पे तुम
अमा में सारी रात
ऐ चाँद
कभी तुम भी तो कहो
अपने दिल की बात
4
शरद पूर्णिमा
चन्दा मामा की
सज धज निराली
लपका मुन्ना
खिलखिल कर
माँ ने बुलाया
आओ बेटा
चांदी की कटोरी में
खीर भरें हम सब
आएगी चाँदनी मामी
रूप और मिठास लिए
अंजुरी भर आस लिए।
--ऋता शेखर मधु

मुक्तक

बाँटना हो गर तुम्हें कुछ, बाँट दो शुभ ज्ञान को|
त्यागना हो गर तुम्हें कुछ, त्याग दो अभिमान को|
जिंदगी में हर कदम पर शुभ्रता शुचिता रहे,
वक्त देकर जब सहेजो वृद्ध की मुस्कान को|

-ऋता शेखर 'मधु'

रविवार, 1 अक्तूबर 2017

निदान-लघुकथा


निदान

''रौल वन, टू, थ्री,फोर.....ट्वेन्टी सिक्स...''
''ये ट्वेन्टी सिक्स, अपराजिता स्कूल क्यों नहीं आ रही| पिछले पच्चीस दिनों से वह अनुपस्थित है''...हाजिरी लेते हुए ममता ने क्लास की लड़कियों से पूछा|
''उसकी शादी है दो दिनों बाद'' लड़कियों की ओर से आवाज आई|
''क्या !!, इतनी छोटी उम्र में शादी| सिर्फ चार महीने बाद उसे बोर्ड की परीक्षा देनी है|वह पढ़|ई में भी होशियार है| विद्यालय की उम्मीद टिकी है उसपर'' ममता को यह बात बिल्कुल भी हजम नहीं हो रही थी|
''मैम, इधर कई महीनों से जब वह स्कूल आती जाती थी तो कुछ लड़के उसे छेड़ते थे| वह रो देती थी|''
''तुमलोग उसके साथ क्यों नहीं जाती थी|''
''जाते थे, पर उनलोगों ने हमे डाँट दिया था कि ज्यादा साथ रहेगी तो तुमलोगों का भी स्कूल जाना मुश्किल कर देंगे|''
''अच्छा, उसके पिता क्या करते हैं''
''रिक्शा चलाते हैं|''
''हम्म, आज उसके घर ले चलना मुझे''
''जी मैम''
छुट्टी हुई तो ममता अपराजिता के घर गई| उसने देखा कि खिड़की से लगी वह खड़ी थी शून्य आँखों से ताकती हुई| ममता को देखते ही खुशी की लहर फेल गई चेहरे पर|
''मैम, मैं शादी नहीं करना चाहती| मुझे पढ़ना है| मुझे बचा लीजिए मैम|''
''मैम क्या करेंगी री| तू अपने घर चली जा, फिर जो जी चाहे करना'' कब पीछे उसका पिता आकर खड़ा हो गया ममता को पता नहीं चला|
ममता ने समझाने की कोशिश की किन्तु वह एक ही चीज बोले जा रहा था,''हमें अपनी बिटिया बहुत प्यारी है मैडम जी पर वे गुंडे खतरनाक हैं...''
शायद आगे कहने की जरूरत नहीं थी|
''अपराजिता, तुम्हारे नाम में ही विजय है, शादी के बाद पढ़ाई नहीं छोड़ना'', इतना कहकर वह उस बेबस शिष्या को छोड़कर जल्दी से बाहर निकल गई|इसका निदान कर पाने में वह खुद को असमर्थ महसूस कर रही थी|
ऋता शेखर 'मधु'





30/09/17