सोमवार, 31 जुलाई 2017

कसम-लघुकथा

कसम

"ममा, आज स्कूल में हम सभी ने मोमबत्तियां जलाकर कारगिल के शहीदों को श्रद्धाजंलि दी। ममा, हमारा देश सबसे दोस्त बनकर रहना चाहता है फिर ये लड़ाइयाँ क्यो होती हैं।" आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले राहुल ने घर आते ही मां से बातें करने लगा।
"बेटा, हमारा देश अहिंसा का पुजारी है। हम किसी को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते। " कहते हुए अंजलि ने टी वी ऑन कर दिया। वहाँ कारगिल युद्ध से संबंधित समाचार आ रहे थे। यह भी बताया जा रहा कि किस तरह देश के एक पत्रकार ने मनाही के बावजूद भारतीय छावनी के पास फोटो खींचने के बहाने फ़्लैश चमका दिया था और दुश्मन देश ने बम वर्षा कर दी जिसके कारण कई सैनिक मारे गए।
"ममा, हम दुश्मन देश से कमजोर हैं क्या।"
"नही, हम ताकतवर है साथ ही सहनशील भी।" ममा ने बताया।
"और इसी सहनशीलता का दंड हम सैनिकों की आहुति देकर चुकाते रहते है।" अचानक महेश आ गए थे कमरे में।
उन्होंने छोटे भाई की फोटो को माला पहनाया।


राहुल तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उसे किसी ने नहीं बताया था कि तस्वीर उसके पिता की है। जब वह दुनिया मे आने वाला था तभी कारगिल युद्ध मे वे शहीद हो गए थे। उनके गम में उसकी माँ बहुत कमजोर हो गई और राहुल को जन्म देते समय चल बसी थी।
तब अंजलि ने बढ़कर दुधमुँहे को छाती से लगाया था और अपने बच्चे को जन्म न देने की कसम खाई थी।
-ऋता शेखर "मधु"

शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

व्हाट्स-एप ग्रुप-लघुकथा

व्हाट्स-एप ग्रुप
व्हाट्स एप पर एक नया ग्रुप अवतरित हुआ-''हम साथ साथ हैं''
परिवार के सभी सदस्यों ने ग्रुप इंफो में जाकर देखा तो उसमें एक परिवार पूरी तरह से नदारद था| घर के सबसे समझदार और न्यायपूर्ण तरीके से सोचने वाले परिवार के बड़े दामाद आनंदी बाबू मुस्कुरा उठे|
उधर आनंदी बाबू की पत्नी लाली ने भी ग्रुप को देखा और पति के पास आकर बोली,''देखा न आपने,रोमा भाभी ने नया ग्रुप बनाया और उसमें मयंक को और उसके परिवार को शामिल नहीं किया''
''ठीक ही है न, कल मयंक ने भी तो एक समूह बनाया था-हमारा परिवार| उसमें उसने बड़े भइया,रोमा भाभी एव उनके बच्चों को नहीं रखा| तब तो तुमने कुछ नहीं कहा लाली|''आनंदी बाबू ने सहज तरीके से कहा|
''मयंक छोटा है, उसकी बातों का क्या लेना'' लाली ने भाई का पक्ष लेते हुए कहा|
'' तुम्हारे छह भाई- बहनों के भरे पूरे परिवार को भाभी ने बहुत समेट कर रखा और तुम सबकी ज्यादतियाँ और नादानियाँ बरदाश्त करती रहीं| मयंक की पत्नी ने आते ही परिवार में राजनीति का खेल शुरु कर दिया| बड़ी भाभी की लोकप्रियता से उसे इर्ष्या होने लगी थी| सबसे बुरी बात यह रही कि तुम सबने उसका साथ दिया| बड़े भइया और मयंक, दोनो तुम्हारे भाई हैं लाली| परिवार में एकता बनी रहे इसकी जिम्मेदारी सबकी होती है|''
''किन्तु भाभी ऐसा कैसे कर सकती हैं|''अभी भी लाली को विश्वास नहीं हो रहा था|
'' तुम्हारी भोली-भाली भाभी ने अब जाकर दुनियादारी सीखी है|''अर्थपूर्ण नजरों से देखते हुए आनंदी बाबू बोले और लाली कुछ न बोल सकी|
--ऋता शेखर 'मधु'

मंगलवार, 25 जुलाई 2017

फ्रेंडशिप बैंड-लघुकथा

प्रेरणा

डोर बेल बजते ही आशा ने दरवाजा खोला|
''हैप्पी फ्रेंडशिप डे" कहती हुई छह सात महिलाएँ अन्दर आ चुकी थीं||
''अरे यार, यूँ आँखें फाड़ फाड़ कर क्या देख रही है आशु डियर| माना कि हम तीस सालों के बाद मिल रहे किन्तु इतने तो न बदल गए कि एक दूसरे को पहचान ही न सकें''|
आशु डियर...ये कहने वाली तो उसकी एक ही दोस्त थी मंजरी जो उसे हमेशा आशा के बजाय आशु ही कहा करती थी| चश्मे के भीतर से झाँकती उसकी आँखों ने सिर्फ मंजरी को ही नहीं बल्कि स्कूल की सभी सहेलियों को पहचान लिया जो आई थीं| उसकी इच्छा हुई कि वह सबके गले से लग जाए और स्कूल के दिनों वाली चुलबुली आशा बन जाए किन्तु वह ऐसा नहीं कर सकी|  उसके उदासीन चेहरे को लखती हुई मंजरी ने सबसे कहा, ''अरे, तुम सब खड़ी क्यों हो, फ्रेंडशिपबैंड बाँधो उसे|"
हाँ हाँ कहती हुई सभी ने उसका हाथ खींचकर बैंड से भर दिया| आशा अचानक उनके गले लगकर फूटफूटकर रोने लगी| मंजरी ने इशारे से सबको चुप रहने को कहा और कुछ देर तक आशा को रोने दिया| थोड़ी देर बाद जब वह शांत हुई तो उसने पूछा, ''तुमलोगों को मेरी खबर कैसे मिली"
मंजरी ने शांति से बताया,'' समय के झंझावात में हम सभी खो गए थे| जब फेसबुक पर आई तो सभी सहेलियों को ढूँढना शुरू किया| रोमा, नेहा, पूजा, अनामिका, पुतुल, उर्मिला सभी मिल गईं, एक तू न मिली| एक दिन फेसबुक पर मैंने तेरे भाई वीरेंद्र को देखा| उनसे ही पूछा तेरे बारे में|शादी होते की पति की मृत्यु होने से ससुराल वाले तुझे कितना भी मनहूस कहें , तू तो हम सबकी वही प्यारी चहकने वाली आशू है न| खुद को दुनिया से काटकर तू सबको कितना दुखी कर रही यह मैंने तब जाना जब तेरे भाई के आँसूओं में देखा| आशू, चल न, वीरेन्द्र और भाभी, बच्चे तेरा इंन्तेजार कर रहे| सबसे पहले एक अच्छे से होटल में चलते हैं, फिर थोड़ी शॉपिंग करेंगे | '' स्कूल के दिनों में दोनों फास्ट फ्रेंड हुआ करती थीं | मंजरी का मन रखने के लिए आशा तैयार होने लगी| मंजरी ने उसे पर्स में चुपके से एक राखी रखते देख लिया|
''एक बात और है आशु, ये सफेद साड़ी क्यों|''
''एक विधवा...'' इसके आगे आशा कुछ कहती तभी मंजरी ने उसके मुख पर हाथ रख दिया|
''ना, ऐसे नहीं बोलते| औरतें ईश्वर की अनुपम कृति हैं| एक विधवा भी बेटी, बहन और माँ होती है| उनके लिए अपनी वेशभूषा बदल दे''|
''अभी आई'' कहकर आशा अन्दर गई| जब वापस लौटी तो उसने आसमानी रंग की सिल्क की साड़ी पहनी थी| माथे पर छोटी सी बिंदी और हाथों में साड़ी से मेल खाती दो दो चूड़ियाँ थीं|
''ये हुई न बात, जल्दी चल|''
ज्योंहि दोनो बाहर निकलीं भाई वीरेन्द्र को देखकर रुक गईं| वीरेंद्र की आँखों में मंजरी के लिए कृतज्ञता झलक रही थी|
--ऋता शेखर 'मधु'

पिता की कोख-लघुकथा

पिता की कोख

सासू माँ के आने से तेजस खुश था| उसकी गर्भवती पत्नी मृणाल का ख्याल रखने के लिए अब कोई तो था घर में| जबसे उसे मृणाल की प्रेगनेंसी का पता चला था वह उसे घर में बिल्कुल भी अकेला नहीं छोड़ना चाहता था| उसकी माँ नहीं थी तो उसने खुद सासू माँ को फोन करके बुलाया था|

"मृणाल, भारी मत उठाना| मृणाल, ऑफिस से लौटते हुए क्या लाऊँ खाने के लिए| मृणाल, तुम्हें अच्छी अच्छी किताबें पढ़नी चाहिए| मृणाल, सुबह उठो तो सबसे पहले बाल गोपाल के कैलेंडर की ओर देखना| मृणाल, खूब खुश रहा करो| मृणाल , मम्मी से पूछकर लाभ वाले फल खाना,"तेजस की हिदायतें जारी थीं|

"उफ, अब बस भी करो तेजस, तुम ऑफिस जाओ|"

"अच्छा बाबा, जाता हूँ", कहकर तेजस गुनगुनाता हुआ चला गया|

''माँ, आपने देखा न, कितनी हिदायतें देते हैं तेजस," मृणाल माँ से बातें करने लगी|
'' बेटा, बच्चा माँ की कोख में रहता है और एक कोख पिता के पास भी होती है|'

'पिता की कोख', मृणाल समझ नहीं पाई|

"हाँ, पिता की कोख उसका मस्तिष्क है जहाँ से वह भी बच्चे को उतना ही महसूस कर रहा है जितना की तुम| वहीं से गर्भ में पल रहे के लिये अहसास ,सपने, परवाह और जिम्मेदारी जन्म लेती है," माँ ने मुस्कुराते हुए कहा|

'' ये है पिता की अनदेखी ममता...' सोचती हुई मृणाल शाम का बेसब्री से इन्तेजार करने लगी|

--ऋता शेखर 'मधु'

रविवार, 23 जुलाई 2017

रिमाइंडर-लघुकथा

रिमाइंडर
" मनीषा, एल आई सी की किश्त भरने का समय निकल गया। अब फाइन देना होगा। रिमाइंडर तो लगा दिया होता।"
मनीषा चाय बनाते बनाते रुक गई। उसने अमित की ओर देखा और एक फीकी हँसी हँस दी।
अमित को सहसा याद आ गया वह पार्टी वाला दिन जब उसने अपने दोस्तों से परिचय करवाते हुए कहा था" ये हैं हमारी श्रीमती जी जो सारे काम रिमाइंडर से ही करती है। साल बदलते ही सभी खास मौकों के लिए रिमाइंडर सेट कर देती हैं। मुझे लगता है आगे रिमाइंडर पर यह भी लगा देंगी की मैं ही इनका पति हूँ।"
और दोस्तों के ठहाको के बीच किसी ने उस अपमान की रेखा को नहीं देखा जो मनीषा के चेहरे पर उभरी थी।
अमित ने आज अचानक महसूस किया और स्वयं मोबाइल लेकर मनीषा के सामने खड़ा हो गया।
-ऋता

शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

ताटंक छंद



ताटंक छंद

1 लावणी
मोहन के माथे केशों की, अवली बड़ी निराली है|
हौले हौले खेल खेल कर, पवन हुई मतवाली है|
थिरक रही अधरों पर बंसी,तन्मय झूम रही गइया|
मोहिनी छवि नंदलाला की, निरखतीं यशोमति मइया||


2 लावणी
रचकर लाली हाथों में तुम, ज़ुल्फ़ें यूँ बिखराती हो|
बादल की बूँदों से छनकर, इंद्रधनुष बन जाती हो|
चमका सूरज बिंदी बनकर, संगीत सुनाये कँगना|
करता जगमग तुलसी चौरा, तुम से ही चहके अँगना||

3 ताटंक
सीमा पर वह डटे हुए हैं, भारत की रखवाली में|
स्वर्ण बाल हैं भुट्टों के भी, कृषकों की हरियाली में|
सोच रहे जब देश के लिए, निज कर्तव्य निभा लेना|
लोक हितों की खातिर साथी, मन का स्वार्थ हटा देना||
--ऋता शेखर 'मधु'

ताटंक-16-14 पर यति...अन्त में गुरु गुरु गुरु

लावणी-16-14 पर यति... लघु लघु गुरु

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

आदर्श घर

आदर्श घर

डॉक्टर बन चुकी निकिता भाई की शादी में आई थी . उसका जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जहाँ बेटा-बेटी का कोई भेदभाव न था| अच्छे संस्कारों के साथ बड़ी हुई थी .

सबने उसे सर-माथे पे बिठाया | वह भी पूरे घर में चहकी फिर रही थी| माँ कुलदेवता की पूजा में व्यस्त थी और निकिता कहती जा रही थी-

'माँ , हमारा घर कितना आदर्श है न! बेटा- बेटी में फर्क नहीं करता|'

पूजा के बाद प्रसाद बँटने लगा तो दादी की आवाज आई|

"बहू, सबसे किनारे वाले देवता का प्रसाद निक्की को न देना|"

"क्यों दादी" निकिता की आवाज में हल्की सी नाराजगी थी|

"निक्की बेटा, वो प्रसाद सिर्फ खानदान के बच्चे ही खा सकते हैं| वह तेरा भाई ही खा सकता है|"

अचंभित सी निकिता ने अपना बढ़ा हुआ हाथ पीछे खींच लिया|


--ऋता शेखर 'मधु'

बुधवार, 19 जुलाई 2017

दोहे की दुनिया

दोहे

1
बहन रेशमी डोर को, खुद देना आकार |
चीनी राखी त्याग कर, पूर्ण करो त्योहार||
2
महकी जूही की कली, देखन को शुभ भोर
खग मनुष्य पादप सभी, किलक रहे चहुँ ओर
3
मन के भीतर आग है, ऊपर दिखता बर्फ़।
अपने अपनों के लिए, तरल हुए हैं हर्फ़।।
4
ज्ञान, दान, मुस्कान धन, दिल को रखे करीब।
भौतिक धन ज्यों ज्यों बढ़े, होने लगे गरीब।।
5
जब जब भी उठने लगा, तुझपर से विश्वास|
दूर कहीं लहरा गई, दीप किरण सी आस||
6
इधर उधर क्या ढूँढता, सब तेरे ही पास|
नारिकेल के बीच है, मीठी मीठी आस||
7
अफ़रातफ़री से कहाँ,होते अच्छे काम।
सही समय पर ही लगे,मीठे मीठे आम||
8
बिन काँटों के ना मिले, खुश्बूदार गुलाब|
सब कुछ दामन में लिए, बनो तुम आफ़ताब||
9
पावन श्रावण मास की, महिमा अपरम्पार।
बूँद बूँद है शिवमयी, भीगा है संसार।।.
10
जब जब पढ़ते लिस्ट में, लम्बी चौड़ी माँग|
नीलकंठ भगवान को,तब भाते हैं भाँग||
11
फूल खिलें सद्भाव के, खुश्बू मिले अपार।
कटुक वचन है दलदली, रिश्तों को दे मार।।

--ऋता

शनिवार, 1 जुलाई 2017

टैक्स के आतंक से मुक्ति- जी एस टी (GST)

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GST- Goods & Services tax.....

इसे good and simple tax के रूप में बताया जा रहा है|
30 जून और 1 जुलाई 17 की मध्यरात्रि को GST का लॉन्च समारोह संसद के सेन्ट्रल हॉल में हुआ जिसमें वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बताया कि एक राष्ट्र एक टैक्स- One nation one tax ही इसका उद्देश्य है और इससे टैक्स चोरी से राहत मिलेगी|
कर प्रणाली व्यवस्था आसान होगी|
केलकर ने 2003 मे एक ऐतिहासिक फैसला लिया था कि पूरे देश में एक तरह का टैक्स हो|
इसमें17 टैक्स और 22 सेस को खत्म किया गया|

प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा ---
यह व्यवस्था किसी एक सरकार की देन नहीं बल्कि सा़ँझा प्रयास का फल है|
जी एस टी की कुल18 बैठकें हुईं|
जी एस टी संघीय ढाँचे की मिसाल है|
जी एस टी लंबी परिचर्चा का परिणाम है|
सवा सौ करोड़ जनता साक्षी बनी|
आर्थिक एकीकरण होगा|
आइंसटीन ने कहा था- इन्कम टैस्क समझना सबसे कठिन काम |
गरीबों का खास ख्याल रखा गया है|
देश आधुनिक टैक्स व्यवस्था की ओर बढ़ रहा|
बीस लाख वाले कारोबारियों को कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा |
यह व्यवस्था इमानदारी का अवसर देगी|
यह सरल पारदर्शी व्यवस्था है|
कच्चा बिल और पक्के बिल का चक्कर खत्म हुआ|
विदेशी व्यापारियों को सुविधा मिलेगी|
आर्थिक से भी आगे सामाजिक क्रा़ंति है जी एस टी|
टैक्स पर टैक्स...टैक्स पर टैक्स से मुक्ति मिली|
यह सरल पारदर्शी व्यवस्था है|
इससे आर्थिक एकीकरण होगा|
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा...
14 वर्षों का सफर है जी एस टी का
रात के बारह बजे से जी एस टी लागू
दुनिया का सबसे बड़ा टैक्स सुधार
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देश में कहीं भी सामान खरीदो, एक ही मूल्य लगेगा|
सबसे खुशी की बात है कि सभी पार्टियों ने इसे समर्थन दिया है|
ऋता शेखर 'मधु'