बुधवार, 9 अप्रैल 2014

रंगा सियार











रंगा सियार...

हरा भरा इक जंगल था
वहाँ न कोई दंगल था
सभी प्यार से रहते थे
अच्छी बातें कहते थे

शेर हिरन भालू या  बंदर
निर्मल दिल था सबके अन्दर
एक घाट पर जाते थे वे
मीठे बोल सुनाते थे वे

कोयल बुलबुल चहका करतीं
कानन में जूही महका करती
वह मंगल वन सबको भाता
दुष्ट शिकारी वहाँ न आता

एक रोज उस नंदन वन में
एक सियार कहीं से आया
कानाफूसी फूट की बातें
जहाँ तहाँ कहकह कर छाया

लोमड़ी दीदी थी बड़ी सयानी
समझ रही थी सभी कहानी
सियार को रस्ते पर है लाना
बात ये उसने मन में ठानी

तभी मूर्ख दिवस था आया
लोमड़ी को भी आइडिया आया
झटपट उसने प्लान बनाया
सबको ताल के निकट बुलाया

हँस हँस कर बोली वह सबसे
कहनी है इक बात को कबसे
इस पोखर में एक घड़ा है
उसके भीतर माल भरा है

कल जो मूरख बन जाएगा
पूरा घड़ा वही पाएगा
सुबह सुबह सब आएँगे
अपने खेल दिखाएँगे


चले गए सब फिर अपने घर
लोमड़ी दीदी गई कुछ रुककर
ताल में उसने रंग मिलाया
फिर मुसकाकर पूँछ हिलाया

आधी रात को पहुँचा सियार
हिलोरे बेवकूफ़ तलैया बार बार
कुछ भी उसके न हाथ लगा
चतुर लोमड़ी ने था खूब ठगा

दूसरे दिन जब हुआ विहान
आने लगे सब पशु महान
सियार भी आया शरमाकर
सब पशु हँस पड़े ठठाकर

हक्का बक्का हो गया सियार
चकित हो देखे सभा निहार
'रंगा सियार' 'रंगा सियार'
छौने चिढ़ाने लगे बार बार

धूर्त ने सबसे मांगी माफी
सबक बना था इतना काफी

सीख लो बच्चो,
न करना नादानी
आज भी जो होते हैं कपटी
रंगा सियार ही कहलाते हैं|
...........ऋता

2 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चे से ही क्यों
    ये सब हैं कहते
    बड़ो में भी रँगे
    सियार बहुत
    से हैं होते :)

    जवाब देंहटाएं
  2. सरल सहज रचना मन भाये
    बाल सुलभता, मन हर्षाये !

    जवाब देंहटाएं

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